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‘‘अब का लउटि के ना अइबे का रे बाबू’’ (शेष स्मृति प्रो. तुलसीराम)

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  • जितेन्द्र बिसारिया 


                                                                                                                         

ओह! तुलसीसरतोआपचलेगए।एकदिनपहलेहीतोज्ञानपीठसेमेराकहानीसंग्रहअनुशंसितहुआथा।सोचाथा   प्रकाशित  होनेपरसबसेपहलेआपकोहीअपनापहलासंग्रहभेंटकरूँगा।समानधर्माकौनहोताहैयहभवभूतिकोपढ़करजानाथाऔरमुर्दहिया पढ़करपायाकिहमारेसमानधर्माआपहैं...चंबलकेबीहड़सेनिकलकरसाहित्यकेबीहड़मेंतीसरीबारजबहाथीकहानीलिखीऔरवहवागर्थकेअक्टूबर2004 केनवलेखनअंकमेंप्रकातिहुई, तबविमर्शऔरविचारधाराके चौखटावद्धव्यूहमेंअभिमन्युकीभाँतिप्रहारझेलतामैंनितांतअकेलाथा।2005 मेंजीवाजीविश्वविद्यालयसे‘‘हिन्दीकीप्रमुखदलितआत्मकथाएँ: एकविश्लेषणशीर्षकसेपीएच-डीशोधमेंस्वानुभूतिऔरसहानुभूतिकेबीचदलितसाहित्यकालेखककौनहो? इसछानबीनमेंउत्तरप्रदेशपत्रिकाकादलितविशेषांकसितंबर-अक्टूबर2002 हाथलगा, तोउसमेंसबसेसंतुलितदृष्टिऔरतर्कआपकेजँचे।उसीदिनसेएकअदेखा-अनजानाप्रेमआपसेहुआऔरलगाकिहमारारास्ताभीइधरसेहीजाताहै।
            
2011 मेंभाईअशोकपाण्डेयसेलेकरमुर्दहियापढ़ी, तोइसविश्वासकोऔरअधिकपुष्टिमिली।बल्किमैंआश्चर्यचकितरहगयाजबआपकीआत्मकथामेंकोतवालनामयुवकद्वाराअपनीमड़ैया(घर) मेंस्वयंआगलगाकरउसकाआरोपीअपनेपड़ोसीसवर्ण(ब्राह्मण) कोबनानेवालाप्रसंगपढ़ा, तोलगाकिहाथीकाकथानककेवलचंबलमेंहीघटितनहींहै- बल्किबदलेकीराजनीतिहरजगहव्याप्तहै।एकसमतापरकसुव्यवस्थितसमाजकानिर्माणअलगावसेनहींआपसीसद्भावऔरसहयोगकीनींवपरहीखड़ाहोसकताहै।औरइसकेपरिपेक्ष्यमेंहाथीकेपक्षमेंवागर्थकोलिखेपत्रमेंमैंनेजबअमृतलालनागरकायहउद्धरणकोटकिया-‘‘जोसाहित्यरसकोउपजायेउमगायेऔरचेतनाकाउध्र्वतरविकासकरेवहसृजनात्मकसाहित्यहै।... जहाँदृष्टिसृजनात्मकहुयीमात्रध्वंसात्मकहुयीतोवहसाहित्यनहीं।मैंतुमकोबहुतउकसादूँऔरतुमकोकोईराहदिखलासकूँकितुमदूसरीराहपरचलो।तुम्हेंउकसाकरतुम्हारेक्रोधकोनपंुसकबनानेकापापमैंक्योंकरूँ।हमेंऔरहमारीरचनाधर्मिताकोजोखोखलाआवेेशबाँधलेताहैउससेबचनाचाहिए।तोउससमयएकतरहसेहमेंवहाँसेआउटकास्टहीकरदियागयाथा!!! तबउससमयभीभवभूतिऔरउनकाकालअनंतऔरपृथ्वीविस्तृतवालानज़रियाहीहमारासंबलबनाथा

मैंकितनाअभिभूतथामुर्दहियाकावहअंतिमप्रसंगपढ़करजिसमेंआपसंगमकादृश्यदेखनेइलाहाबादजातेहैंऔरबाढ़ग्रस्तगंगाउफानपरहैंऔरसंगमपरखड़ेआपसोचतेहैंकिसंगमकेदृश्यभीसहजावस्थामेंहीदेखनेकोमिलतेहैंऔरमैंउसकाविश्लेषणकरतेउसकीसमीक्षामेंलिखताहूँ-‘‘इसबारतुलसीअपनेउन्हींरंग-रसियामित्रलालबहादुरकेसाथडब्ल्यू.टी. प्रयागकीयात्राकरतेहैं।किन्तुउसवर्षप्रयागमेंबारहसालउपरांतपड़ेकुँभकेमेलेमेंआईबाढ़केचलते, तुलसीसंगमकावहअल्ह्ादकारीदृश्यनहींदेखपातेहैं।संगमअर्थातविरोधीधाराओंकासमन्वय।प्रयागमेंबाढ़केसमयसंगमकादृश्यदेखपानेकेकारणतुलसीमहसूसकरतेहैंकिसंगम’ (समन्वय) भीसुप्तअवस्थामेंहोताहै।जिसतरहबाढ़ग्रस्तनदियाँअपनेसाथविनाशऔरबरबादीलिएहोतीहैं, ठीकउसीतरहप्रतिगामीउग्रविचारधाराओंकाउभारऔरउनकाजनवादीविचारधाराओंसेटकरावभीसमाजमेंध्वंसकाहीकारणबनताहै।समाजमेंसुख-समृद्धिकेमनोरमसंगमदृश्यतोशांतिकालमेंहीउपस्थितहोतेहै, जबविचारधाराएँबहुजनहिताएबहुजनसुखायकेलिएएकलयहोविशालभागीरथीकारूपधारणकरआगेबढ़तीहैं।

 ...वामपंथीआपभीरहेऔरहमभी... तबतयथाकिकिसीमोड़परआपसेमुलाकातज़रूरहोगी।औरवहसंयोगशीघ्रहीहाथलगाजब12-14 अप्रैल2012 मेंप्रगतिशीललेखकसंघके75 वेंराष्ट्रीयसेमीनारमें.प्र. प्रलेसंकीग्वालियरइकाईकीओरसेमैंऔरदादामहेशकटारेउसमेंउपस्थितहुएथे।उसतीनदिवसीयसेमीनारमेंमैंनेपहले-पहल-नामवरसिंह, विश्वनाथत्रिपाठी, मैनेज़रपाण्डेयऔरवीरेन्द्रयादवकेसाथ-साथमंचपरआपकोभीदेखाथा।किसतरहआपनेअपनेव्यख्यानमें  उसदिनप्रगतिशील-जनआंदोलनोंकीवैश्विकपृष्ठभूमिमेंजातेहुएभारतीयपरिवेशखासकरदलित-आदिवासीआंदोलनोंकेसाथएकसाझामुहिमकेमाध्यमसेसाम्राज्यवाद, पूँजीवाद, फासीवादऔरजातिवादसेनिपटनेकेतरीके, आपनेसुझायेथेऔरलोगकिसतरहआपसेसहमतथेयहमैंनेअपनीखुलीआँखोंदेखाथा।व्याख्यानकेबाद हॉलमेंतालियोंकीगड़गड़ाहटकेबादमद्धिमपड़तेस्वरोंमें, आसपासकीकुर्सियोंसेउभरतीआवाजोंऔरफुसफुसाहटोंमेंभी  उसदिनआपकीविद्वता, अंतर्राष्ट्रीयज्ञानऔरसुलझीदृष्टिकीभूरि-भूरिप्रशंसाकोभीपहले-पहलउसीदिनस्पष्टशब्दोंमेंसुनाथा।

कहनेवालेतोयहभीकहतेहैंकिबुद्धकामार्गमध्यममार्गहैऔरमध्यममार्गअपनीखालबचानेकेसिवायकुछनहीं? तथा मार्क्स प्रणीतवामआंदोलनउसफुँफकारविहीनमृतप्रायःसर्पकीभाँति  होगयाहै, जिसकाभयअबकोईनहींमानता।परआपतोआजन्मइन्हींराहोंपरचले।बुद्धविचारोंमेंरहेऔरमंचमाक्र्सवादियोंसाथकेशेयरकिए।क्यायहहमारीहीनग्रंथिहैकिहमअकेलेनहींचलसकतेयाइसदेशकीमिट्टीकासाँझीगुण, जोकिसीकोअकेलारहने/चलनेनहींदेता।अपनीशुरूआतमेंउग्रविचारधारासेलैसजबइतिहासऔरसाहित्यखंगालते, मनुस्मृतिदहनकरतेसमयबाबासाहेबकेसाथसहस्त्रबुद्धेकोखड़ापायातोमनमेंकाफ़ीकोफ्तहुयीथीकिबाबासाहेबक्यायहकार्यअकेलेनहींकरसकतेथे? क्याउन्हेंअपनेलोगोंपरभरोसानहींथा।बुद्ध, कबीर, रैदासऔरयहाँतककिमहात्माफुलेजैसेसयानेलोगोंनेभीक्योंइन्हेंअपनाशिष्यबनायायाखुदउनकेशिष्यबने।मैंइसबारपुस्तकमेलेकेदौरानघरआकरआपसेपूछनाचाहताथाकिक्योंमुझेभीअजयनावरिया, कैलाशवानखेड़े, सुनीलकुमारसुमन’, गंगासहायमीणा, सुरजीतसिंह, संजीवचंदन, महेन्द्रप्रजापतिऔरमुकेशमानसकेसाथ-साथफिरोज़, अशोकचैहान, आशीषदेवराड़ी, अशोककुमारपाण्डेय, सुभाषगाताड़े, कुमारअनुपम, मनोजकुमारपाण्डेय, हरेप्रकाशउपाध्यायकुणालऔरचंदनपाण्डेयइतनेप्रियहैं? क्योंउनकेबिनाअपनेकोअधूरापाताहूँ।आपतोविद्वानथे/दिल्लीमेंरहतेथे/ आपपरहमेंपूराभरोसाथा/अबयहसवालमैंकिससेपूछूँगा? इनदुचितेसवालोंसेलैसऔरनिस्सहायठीकयहीसवालकरतेहुएखड़ारहगयाहूँ, जोसवालगाँवछोड़तेमुर्दहियापरखड़ीअपकीप्रियसखीललतीनेकियाथा-‘‘अबकालउटिकेनाअइबेकारेबाबू’’


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           B-15 गौतमनगरसाठफीटरोड
     थाठीपुरग्वालियर-474011 (.प्र.)
     मोबाइलः 91$989337530
                                                                                 -मेल: jitendra.visariya2@yahoo.co.in

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