Quantcast
Channel: असुविधा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 273

नरेश सक्सेना के संकलन सुनो चारुशीला पर नलिन रंजन सिंह

$
0
0


  • नलिन रंजन सिंह

‘सुनो चारुशीला’ नरेश सक्सेना का दूसरा कविता संग्रह है। पहला संग्रह ‘समुद्र पर हो रही है बारिश’ पाठकों और आलोचकों द्वारा पहले ही सराहना प्राप्त कर चुका है। नरेश सक्सेना पिछले 54 वर्षों से कविता लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं, फिर भी उनके मात्र दो कविता संग्रहों का छपना उनके प्रशंसक पाठकों को आश्चर्यचकित करता है। दरअसल नरेश जी की कविता की ताकत भी यही है-कम लिखना, ज्यादा पढ़ा जाना और पाठकों को याद रहना। नरेश जी हमारे समय के कुछेक कवियों में से हैं जो कम लिखते हैं लेकिन जो लिखते हैं वह यादगार लिखते हैं। आज जबकि लोगों को कविताएँ याद नहीं रहतीं, लोग कविताओं को नहीं, कवियों को याद रखते हैं- तब नरेश जी को लोग उनकी कविताओं से जानते हैं, पहचानते हैं। पहचानने का संदर्भ इसलिए कि नरेश जी की कविताएँ उनसे सुनने का आनंद ही कुछ और है। नरेश सक्सेना की कविताओं में बोध और संरचना के स्तरों पर अलग ताजगी मिलती है। बोध के स्तर पर वे समाज के अंतिम आदमी की संवेदना से जुड़ते हैं, प्रकृति से जुड़ते हैं और समय की चेतना से जुड़ते हैं तो संरचना के स्तर पर वे अपनी कविताएँ छंद और लय के मेल से बुनते हैं।

‘सुनो चारुशीला’ में नरेश जी की कुल 49 कविताएँ शामिल हैं। ज़्यादातर कविताएँ सन् 2000 के बाद की लिखी गई हैं। कुछ कविताएँ 1960-62 के आस-पास की हैं। इन्हें पहले संग्रह में ही होना चाहिए था किन्तु ये कविताएँ अगर दूसरे संग्रह में हैं और पुरानी हैं तो भी न ही उनका महत्व कम हुआ है और न ही वे कहीं से पुरानी लगती ही हैं। नरेश जी की कविताओं को पढ़ने-सुनने से ऐसा लगता है कि इनमें से अधिकतर कविताएँ छंदबद्ध हैं और नरेश जी पुरानी परम्परा के वाहक कवि हैं। किन्तु वे ऐसा नहीं मानते। ‘सुनो चारुशीला’ के पूर्वकथन में वे लिखते हैं- ”कुछ लोगों की धारणा है कि मैं पहले गीत लिखता था, बाद में गद्य शैली में लिखने लगा। यह सच नहीं है। छंद में तो आज भी लिखता हूँ। ‘शिशु’ और ‘घास’ कविताएँ छंद में हैं और इधर की ही लिखी हुई हैं, किन्तु आज की कविता के साथ छंद या लय का निर्वाह सहज संभव नहीं है। ... मैंने मुख्यतः गद्य शैली में ही कविताएँ लिखी हैं। किन्तु 1962 में एक खास वजह से कुछ गीत लिखे, जिन्हें धर्मयुग ने पूरे रंगीन पृष्ठ पर बड़ी प्रमुखता से छापा। ...शायद इसी कारण लोगों का ध्यान मेरे गीतों की ओर आकर्षित हुआ होगा। ...‘कल्पना’ में, उन दिनों तीन बार में मेरी कुल आठ कविताएँ छपी थीं जिनमें से सात गद्य में थीं, सिर्फ एक छंद में।“ 

फिर भी संगीत और कविता में एक आंतरिक संगति मानने के कारण वे अपनी कविताओं में स्वर लहरियों का सृजन करते हंै। याद कीजिए नवगीत आंदोलन और फिर पाठ करिए नरेश जी की कविता ‘ज़िला भिंड, गोहद तहसील’ का। स्पष्ट हो जाता है कि नव गीत के सारे तत्व यहाँ मौजूद हैं- 

चिल्ला कर उड़ी एक चील 
ठोस हुए जाते सन्नाटे में ठोकती गयी जैसे कील 
सुन्न पड़ीं आवाज़ें
शोरों को सूँघ गये साँप 
दम साधे पड़े हुए, 
पत्तों पर हवा के प्रलाप 
चली गयी दोपहरी, दृश्यों के 
दफ़्तर में लिखकर तातील 
हवा ज़रा चली कि फिर रोएगी 
ढूहों पर बैठकर चुड़ैल 
नदी बेसली के आरे-पारे 
उग आएगी भुतही गैल 
भरी पड़ी रहेगी सबेरे तक 
ज़िला भिंड गोहद तहसील।


नरेश जी के कविता लेखन की एक अलग शैली है। मुझे लगता है कि इसे अगर निर्झर शैली कहा जाय तो बिल्कुल ठीक होगा। कभी भोर में हरसिंगार के पेड़ के नीचे खड़े होइए- आप गहरी खुशबू से भर जाएँगे; और यह क्या आप तो फूलों से नहा उठे! खुशबू ही नहीं फूल भी झरते हैं वहाँ। नरेश जी की कविता भी ऐसी ही है। झरते हुए शब्दों में एक भीनी सी सुगंध लिए हुए। ‘गिरना’ कविता की पाठ प्रक्रिया से गुजरते हुए हमें कुछ ऐसा ही आभास होता है- 



गिरो प्यासे हलक में एक घूँट जल की तरह 
रीते पात्र में पानी की तरह गिरो 
उसे भरे जाने के संगीत से भरते हुए 
गिरो आँसू की एक बूँद की तरह 
किसी के दुख में 
गेंद की तरह गिरो 
खेलते बच्चों के बीच 
गिरो पतझर की पहली पत्ती की तरह 
एक कोंपल के लिए जगह ख़ाली करते हुए 
गाते हुए ऋतुओं का गीत 
”कि जहाँ पत्तियाँ नहीं झरतीं 
वहाँ वसन्त नहीं आता“ 
गिरो पहली ईंट की तरह नींव में 
किसी का घर बनाते हुए

नरेश सक्सेना की ऐसी कविता पढ़ने के बाद यह विश्वास करना बेहद कठिन है कि पढ़ाई में दसवीं के बाद हिन्दी भाषा उनका विषय नहीं रहा। उन्होंने एम.ई. तक इंजीनियरिंग पढ़ी और पैंतालीस वर्ष तक इंजीनियरिंग ही की। ईंट, गिट्टी, सीमेण्ट, लोहा, नदी, पुल- उनकी रोज़ी-रोटी के साधन रहे और उनकी सोच के केन्द्र में भी। इसीलिए ये सब उनकी कविता में शामिल हैं। नरेश जी के पहले किसी कवि की कविता में ये शब्द नहीं मिलते। विज्ञान का विद्यार्थी होने के कारण उसकी सैद्धान्तिकी को आधार बनाकर जिस तरह की कविताएँ नरेश जी ने लिखी हैं उस तरह की कविताएँ हिन्दी में मिलना मुश्किल हैं। ‘गिरना’, ‘सेतु’, ‘पानी क्या कर रहा है’, ‘प्रवासी पक्षी’, ‘अंतरिक्ष से देखने पर’ आदि कविताएँ एकदम अलग भाव-बोध की कविताएँ हैं। लेकिन कवि का हुनर ऐसा है कि वह विज्ञान और संवेदना के मेल से इन कविताओं को विशिष्ट बना देता है। ‘प्रवासी पक्षी’ कविता की अंतिम पंक्तियाँ कुछ ऐसी ही है।- 

पर्वतों, जंगलों और रेगिस्तानों को पार करती हुई 
वे जहाँ जा रही हैं, ऊष्मा की तलाश में 
वहाँ पिंजरे और छुरियाँ लिये 
बहेलिये उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

नरेश सक्सेना की कविता में प्रकृति का रूप भी विलक्षण है। वे जिस तरह से बारिश, पानी, फूल, पत्तियाँ, पेड़, घोंसले, पक्षी, धूप, सूर्य, पहाड़, बर्फ, घास, चाँद, मिट्टी और आकाश को देखते हैं वह उनके सौन्दर्य बोध की अलग दुनिया है। आकाश, धरती, बारिश और रंगों से मिलकर ‘रंग’ जैसी कविता भी हो सकती है, सहसा विश्वास नहीं होता। 

सुबह उठकर देखा तो आकाश 
लाल, पीले, सिन्दूरी और गेरुए रंगों से रंग गया था 
मजा आ गया ‘आकाश हिन्दू हो गया है’ 
पड़ोसी ने चिल्लाकर कहा 
‘अभी तो और मज़ा आएगा’ मैंने कहा 
बारिश आने दीजिए 
सारी धरती मुसलमान हो जाएगी।  

दरअसल नरेश सक्सेना अपने समय के सजग कवि हैं। वे बाज़ारवाद, साम्प्रदायिकता और ऊँच-नीच की खाई को ठीक से पहचानते हैं। इन सारे संदर्भों में उनकी प्रगतिशील पक्षधरता देखी जा सकती है। ‘ईश्वर’, ‘गुजरात-1’, ‘गुजरात-2’, ‘ईश्वर की औकात’, ‘देखना जो ऐसा ही रहा’, ‘धूप’, ‘ईंट-2’ आदि कविताएँ इसी दायरे में आती हैं। ‘गुजरात-2’ कविता में सपाट संवादों के सहारे वे सब कुछ सीधे-सीधे कह देते हैं और अपना निर्भीक पक्ष प्रस्तुत करते हैं- 

”कैसे हैं अज़ीज़ भाई“, फोन पर मैंने पूछा
”खैरियत से हूँ और आप?“ 
”मज़े में...“ मुँह से निकलते ही घड़ों पानी पड़ गया 
”अच्छा ज़रा होश्यार रहिएगा“ 
”किससे?“ 
”हिन्दुओं से”, कहते-कहते रोक लिया ख़ुद को 
हकलाते हुए बोला- 
”बस, ऐसे ही एहतियातन कह दिया“। 
रख दिया फोन 
सोचते हुए 
कि उन्हें तो पता ही है 
कि किससे।  

यह पक्षधरता उन्हें समाज के हाशिए पर स्थित लोगों के पास ले जाती है। उनकी तमाम कविताएँ वंचितों के पक्ष में खड़ी होकर बोलती हैं। उन्हें ‘घास’, ‘चीटियाँ’ और ‘नीम की पत्तियाँ’ इसीलिए प्रिय हैं। ‘नीम की पत्तियाँ’ तो इतनी कि उसकी सुन्दरता बताने में वे कविता को असमर्थ समझते हैं। उनके सौन्दर्य बोध में घुला हुआ यथार्थबोध धूमिल की कविता ‘लोहे का स्वाद.....’ की स्मृति को ताजा कर देता है। 

कितनी सुन्दर होती हैं पत्तियाँ नीम की  
ये कोई कविता क्या बताएगी 
जो उन्हें मीठे दूध में बदल देती है 
उस बकरी से पूछो 
पूछो उस माँ से 
जिसने अपने शिशु को किया है निरोग उन पत्तियों से 
जिसके छप्पर पर  उनका धुआँ 
ध्वजा की तरह लहराता है 
और जिसके आँगन में पत्तियाँ 
आशीषों की तरह झरती हैं 

‘सुनो चारुशीला’ कविता नरेश जी ने दिवंगत पत्नी विजय के लिए लिखी है। उन्हीं को श्रद्धांजलि स्वरूप कविता संग्रह का नाम भी ‘सुनो चारुशीला’ रखा है। कविता में एक ओर दाम्पत्य प्रेम का रस उद्वेलित है तो दूसरी ओर उस प्रेम को खोने का आभ्यांतरिक विलाप भी है। 

संग्रह में विनोद कुमार शुक्ल के लिए लिखी गई कविता ‘दरवाजा’ भी शामिल है। हालाँकि नरेश सक्सेना ने ‘दीवारें’, ‘क़िले में बच्चे’ और ‘घड़ियाँ’ जैसी कविताएँ भी संग्रह में शामिल की हैं लेकिन कुछ और कविताएँ भी हैं जिनकी अलग से चर्चा की जा सकती हैं। इनमें ‘मछलियाँ’, ‘दाग धब्बे’, ‘तुम वही मन हो कि कोई दूसरे हो’, ‘एक घायल दृश्य’, ‘फूल कुछ नहीं बताएँगें’, ‘इतिहास’, ‘कविता की तासीर’, ‘संख्याएँ’, ‘आधा चाँद माँगता है पूरी रात’, ‘पहले बच्चे के जन्म से पहले, ‘सीढ़ियाँ कभी ख़त्म नहीं होतीं’, ‘मुर्दे’, ‘पीछे छूटी हुई चीजें’, ‘अजीब बात’, ‘प्रेत मुक्ति’, ‘मुझे मेरे भीतर छुपी रोशनी दिखाओ’ और ‘एक चेहरा समूचा’ महत्वपूर्ण हैं। 

नरेश सक्सेना की कविताओं की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये कविताएँ पाठकों और श्रोताओं से अपना बार-बार पाठ कराती हैं फिर भी आकर्षण नहीं खोतीं। स्पष्ट है कि नरेश जी की भाषा की ताकत कविताओं के पाठ में निहित है। इस पाठ की अंतध्र्वनियाँ नरेश जी के काव्य पाठ की भंगिमा से मिलकर लय लहरियाँ उठाती हैं। कदाचित् इसीलिए विनोद कुमार शुक्ल का मानना है कि ‘उनसे कविता को सुनना, जीवन के कार्यक्रम को सुनना है’ और राजेश जोशी भी मानते हैं कि ये कविताएँ ‘लय की कुदाल’ से उत्खनित हैं।
सुनो चारुशीला: नरेश सक्सेना, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, पहला संस्करण: 2012, पृष्ठ-82, मूल्य-रु. 100/-  आनलाइन यहाँ से खरीदी जा सकती है.


नलिन रंजन सिंह 
हिंदी के सक्रिय आलोचक, वरिमा नामक शोध पत्रिका का सम्पादन. सम्प्रति जयनारायण पी.जी. कालेज, लखनऊ में अध्यापन.

संपर्क - 7, स्टाफ कालोनी, स्टेशन रोड, लखनऊ-226001    
मो. 9415576163,   ई-मेल: drnrsingh5@gmail.com                                     
  
                                                 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 273

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>