Quantcast
Channel: असुविधा
Viewing all articles
Browse latest Browse all 273

प्रदीप अवस्थी की कविताएँ

$
0
0
प्रदीप अवस्थी की कविताओं ने इधर लगातार प्रिंट में तथा ब्लॉग्स पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज़ की है. उनकी कविताएँ एक असंतुष्ट युवा की कविताएँ हैं, कई बार भाषिक संयम तोड़ डालने की हद तक  दुःख और क्रोध के बीच एक मुसलसल सफ़र करती हुई और इस रूप में हिंदी की प्रगतिशील-जनवादी परम्परा से सीधे जुड़ती हैं. असुविधा पर उनकी कविताएँ पहली बार आ रही हैं. उनका आभार और उम्मीद की हमें आगे भी उनका सहयोग मिलता रहेगा.




फिर नहीं लौटे  ! पिता

हाफलौंग की पहाड़ियाँ हमेशा याद रहेंगी मुझे   

     वॉलन्टरी रिटायरमेंट लेकर कोई लौटता है घर 
     बीच में रास्ता खा जाता है उसे
     दुःख ख़बर बन कर आता है
     एक पूरी रात बीतती है छटपटाते 
     सुध-बुध बटोरते

     अनगिनत रास्ते लील गए हैं सैकड़ों जानें
     एक-दूसरे से अपना दुःख कभी न कह सकने वाले अपने
     कैसे रो पाते होंगे फूट-फूट कर  
     
     असम में लोग ख़ुश नहीं है
     बहुत सारी प्रजातियाँ अपनी आज़ादी के लिए लड़ रही हैं
     उनके लिए कोई और रास्ता नहीं छोड़ा गया है शायद  
     हथियार उठाना मजबूरी ही होती है यक़ीन मानिए 
     कोई मौत लपेटकर चलने को यूँ ही तैयार नहीं हो जाता  

     आप देश की बात करते हैं,
     युद्ध की बात करते हैं,
     देश तो लोग ही हैं ना !
     उनके मरने से कैसे बचता है देश ?

     बॉर्डर पर, कश्मीर में, बंगाल में, छत्तीसगढ़ में, उड़ीसा में, असम में
     मरते हैं पिता
     उजड़ते हैं घर
     बचते हैं देश

     अख़बारों में कितनी ग़लत खबरें छपती हैं, यह तभी समझ आया  
     
     सामान लौटता है !
     गोलियों से छिदा हुआ खाने का टिफ़िन,
     रुका हुआ समय दिखाती एक दीवार घड़ी,
     बचपन से ख़बरें सुनाता रेडियो,
     खरोंचों वाली कलाई-घड़ी,
     खून में भीगी मिठाइयाँ,
     लाल हो चुके नोट,
     वीरता के तमगे,
     और धोखा देती स्मृति  
     
     कितनी बार आप लौट आए
     वो मेरी नींद होती थी या सपना या कुछ और
     जब चौखट बजती थी और आप टूटी-फूटी हालत में आते थे
     फिर कुछ दिनों में चंगे हो जाते थे
     ऐसा मैंने कुछ सालों तक देखा
     अब वो साल तक नहीं लौटते

     हर बार सोचा कि
     इस बार जब आप आएंगे सपने में
     तो दबोच लूँगा आपको
     सुबह उठकर सबको बोलूंगा कि देखो
     लौट आए पापा
     मैं ले आया हूँ इन्हें उस दुनिया से
     जहाँ का सब दावा करते हैं कि नहीं लौटता कोई वहाँ से,
     ऐसी सोची गई हर सुबह मिथ्या साबित हुई

     काश फिर आए ऐसा कोई सपना
     फिर मिल पाए वही ऊर्जा
     एक घर को
     जो पिता के होने से होती है

     हे ईश्वर !
     कोई कैसे यह समझ पैदा करे कि बिना झिझके सीख पाए कहना
     “पिता नहीं हैं”  

    और कितनी भी क़समें खाते जाएँ हम
    कि नहीं आने देंगे किसी भी और का ज़िक्र यहाँ
    पर एक समय था, एक शहर था बुद्ध का, एक साथ था,
    फल्गु नदी बहती थी ,
    विष्णुपद मंदिर में पूर्वजों को दिलाई जाती थी मुक्ति
    हम यहाँ दोबारा आएंगे और करेंगे पिण्ड-दान
    ऐसा कहती, भविष्य की योजनाएँ बनाती एक लड़की
    जा बैठी है अतीत में कहीं

    आख़िरी स्मृतियों में बचती है रेल,
    प्लेटफार्म पर हाथ हिलाते हुए पीछे छूट जाना
    उस आख़िरी साथ में पहली बार उन्होंने बताए थे अपने सपने  
    
    सात साल पहले इसी दिन वो लौटे
    हमने उन्हेँ जला दिया
    फिर कभी नहीं लौटे
    पिता ।  


गर्व ना करे, रोये

एक को ग़ायब किया (जो अब तक ग़ायब है )
एक को जेल में डाला ( कोर्ट परिसर में मारा पीटा )
एक को मार दिया ( वो छोड़ गया अपना लिखा )

देश ने अपना बेटा खोया
ऐसी आवाज़ आयी फिर एक मंच से

हमने ख़ुशी मनायी, न्यूज़ चैनल्स ने बताया
कि देखो मार आये घुसकर उनको
अपने कितने मरे ये गिनने का वक़्त आया तो विराट कोहली छक्के मार रहा था

जैसे क्रिकेट में शतक, द्विशतक या त्रिशतक लगने पर
झूम उठता है पूरा देश
वैसे ही सरहद पर तीन लाशें गिरने पर कभी रोये पूरा देश
बस !
गर्व ना करे, रोये.

गर्व ना करे मृतकों पर कि बहादुरी से लड़ते हुए मरे
सवाल पूछे और सोचे कि आख़िर कहाँ और क्यों बार बार
असफल होते हैं हमारे हुक्मरान

अक्सर तो वे ख़ुद ही रचते हैं माहौल युद्धोन्माद का

उनका मरना ही उनके जीवन की सार्थकता है
ऐसा तय किया गया था

फ़र्क नहीं पड़ता था उनके मरने से
लेकिन हमारी छातियों को फूलने का अवसर मिल जाता था
अपने जीवन में कुछ नहीं किया था ऐसा अब तक
ना ही आगे करने वाले थे ऐसा कुछ, यक़ीन था
जिसके दम पर गर्वित होकर फूलती हमारी छातियाँ

भाई ने लगाये चक्कर अस्सी-अस्सी एक दिन में कि अटेस्ट करो साहब
मैं पहली बार अवसाद के अंधेरे में गिरा, पिता को ढूँढता
आज तक नहीं छूटा
आज भी माँ कहती कि यहीं कहीं दिल्ली में हैं वो, पता करो

मेरा पिता गोलियों से धुना-भुना टूटा-फूटा शरीर लेकर आता है
दरवाज़ा खटखटाता है
मैं खोलता हूँ, वो मर जाता है हर बार सपने में

तुम्हें युद्ध चाहिए कमीनों !


यह वर्तमान समय का दस्तावेज़ है

यह सन 2015/16/17 की बात है
देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है
नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं
उनकी या उनकी सरकार की नीतियों की आलोचना करना
देशद्रोह हो गया है
लोग,
सरकार और देश में फ़र्क करना भूल चुके हैं
अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को लगातार बचाया जा रहा है

पिछली सरकार कांग्रेस की थी
वे चोर भी थे, शातिर भी
चोरी करते थे, घोटाले करते थे, बच जाते थे
कभी कभी पकड़े भी जाते थे
इस्तीफ़े होते थे, सजाएँ होती थीं
अब जो सरकार है
इसे गुंडा या डकैत कुछ भी कह सकते हैं
ये पकड़े नहीं जाते और इस्तीफों का रिवाज़ ही नहीं है

मानवता के इतिहास में यह समय यूँ दर्ज किया जाए
कि पूरा देश नए तरह के गुटों में बंट गया है
खुल्लमखुल्ला गालियों का दौर है
और देशभक्ति दर्शाने का सबसे आसान तरीका माँ-बहन की गालियाँ देना हो गया है

अच्छे अच्छे भाषण देना एक कला है
और जिसको यह आता है वह जीत रहा है
चुनावों में कुछ कम्पनियाँ पैसा लगाती हैं
फिर वही पैसा देश में रहने वाले लोगों से चूसा जाता है
जिस देश के बड़े हिस्सों में अभी तक बिजली नहीं है
वहाँ डिजिटल युग आने वाला है
कैशलेस व्यवस्था की कगार पर खड़ा है समूचा देश

अपनी बेटियों से आप प्यार करते हैं यह बताने के लिए
फ्रंट कैमरा वाला स्मार्ट फ़ोन ज़रूरी हो गया है
देशभक्ति का मतलब पकिस्तान के खून का प्यासा होना है
किसानों की लगातार आत्महत्या कभी राष्ट्रीय समस्या नहीं बनती
बनती भी है तो उन्हें नपुंसक बताया जा रहा है
स्त्रियों को उनकी मर्यादाएँ फिर याद दिलाई जा रही हैं
सेंसर में एक संस्कारी बाबा बैठे हैं जो नहीं चाहते कि आप
चूमता हुआ जेम्स बॉन्ड या
परदे पर बेझिझक चूमती और सम्भोग करती स्त्रियाँ देखें
राष्ट्रगान ज़बरदस्ती कानों में घुसेड़ा जा रहा है
और झंडे के तीन रंग डंडे में बांधकर आँखों में लपेटे जा रहे हैं

मन की बातें एकतरफ़ा हो चली हैं जहाँ कोई सिर्फ़ बोलने आता है
पर सुनने नहीं, जबकि चुना इसीलिए गया था कि सुने भी

यह वर्तमान समय का दस्तावेज़ है
आप इसे वर्षों बाद, बदलकर, स्कूलों में बच्चों को कुछ और ही पढ़ाएंगे

और अंत में इस समय के राष्ट्रवाद का एक मासूम सा उदाहरण

( मादरचोद ! भारत माता का अपमान करता है ?
  और तू साली रंडी !
  ज़्यादा ज़ुबान खुल रही है तेरी
  मेरे देश की संस्कृति के ख़िलाफ़ कुछ बोली ना
  तो बीच सड़क पर नंगा करके गैंगरेप होगा तेरा
  @#$%&*@@##$$&&~*&@#@$@#@$@% ) .




Viewing all articles
Browse latest Browse all 273

Latest Images

Trending Articles



Latest Images

<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>