- मंजरीश्रीवास्तव
दिल्लीमेंहरवर्ष जनवरीकामौसमतोभारतरंगमहोत्सवकीवज़हसेरंगारंगहोताहीहैपरइसवर्षतोरंगमहोत्सवकीइसश्रृंखलाकोसाहित्यकलापरिषद्, दिल्ली नेअपनेआयोजन 'युवानाट्यसमारोह' सेवसंतयानिफरवरीतकरंगारंगबनायेरखाहै।
कईवर्षोंकेपश्चातहोनेवालेइसयुवानाट्यसमारोहमेंइसवर्षदिल्लीकेआठसक्रिययुवानाट्यनिर्देशकोंकोअपनीप्रतिभाकेप्रदर्शनकाअवसरदियागया।आठदिवसीयइसयुवानाट्यसमारोहमेंसुरेन्द्रवर्मा,नीलसिमोन, प्रो. अविनाशचन्द्रमिश्र, मोहनराकेश, महाकविभास, भीष्म साहनीऔरविजयतेंदुलकरजैसे सुप्रसिद्धनाटककारोंकेप्रख्यातनाटकोंक्रमशः - क़ैद-ए-हयात, खुसर-फ़ुसर, बड़ानटकिया कौन, आषाढ़काएकदिन,प्रतिज्ञायौगंधरायण, कबिराखड़ाबजारमें, ख़ामोशअदालतजारीहैऔरआधे-अधूरेकोयुवानिर्देशकोंक्रमशःदानिशइक़बाल, कुलजीतसिंह, प्रकाशझा,भूपेशजोशी, भूमिकेश्वरसिंह, गोविन्दसिंहयादव, रोहितत्रिपाठीऔरचंद्रशेखरशर्माकेनिर्देशनमेंमंचितकियागया।
इसनाट्यसमारोहकाउदघाटन 11 फरवरी 2013 को सुरेन्द्रवर्मा द्वारालिखितएवंदानिशइक़बालद्वारानिर्देशितनाटक 'क़ैद-ए-हयात' सेहुआऔर 21 फरवरीको इससमारोहकीआख़िरीप्रस्तुतिथीमोहनराकेशद्वारारचित 'आधे-अधूरे' जिसकेनिर्देशकथेचंद्रशेखरशर्मा।
‘क़ैद-ए-हयात’महान उर्दूशायरमिर्ज़ाग़ालिबकेकष्टप्रदसंसारपरपकड़बनाताहुआनाटकथा।इसमेंग़ालिबकीतल्ख़घरेलूज़िन्दगी, आर्थिकतंगीऔरइनसबसेऊपरकातिबाकेलिएउनके असफलप्रेमकोप्रदर्शितकियागया।यहनाटकतीनअंकोंमेंविभक्तथा।पहलाअंकग़ालिबकेघरमेंहीघटताहै, जहाँउनकीपत्नीउमरावहैऔरहमदर्दबहन।साथहीकर्ज़दारभीहैंजोलगातारग़ालिबकीमानसिकयंत्रणाकाकारणबनतेहैं।दूसरे अंकमें कातिबाऔरग़ालिबकीअंतरंगताकेलिएतीव्रउत्कंठाकाचित्रणहै।तीसराअंकएकपूरेवर्षकालेख-जोखाहै, जबग़ालिबकलकत्तासेवापसलौटतेहैं, पेंशनकीअपीलठुकरादिएजानेकेबादवेअपनेहीघरमेंनज़रबंदहैं।कातिबा कीमौतपरउनकीआत्माचीत्कारकरउठतीहै।
नाटककारनीलसाइमनकीनाट्यकृतिरयूमर्सकाहिंदीरूपांतरण 'खुसर-फ़ुसर' शुरूहुआकुछधनाढ्यजोड़ोंकेसाथजोएकदम्पतिकीपहलीविवाह वर्षगाँठमानानेकेलिएउनकेरईसइलाकेमेंस्थितघरपरएकत्रहुएहैं।जबवेवहांपहुँचतेहैंतोपातेहैंकि वहांकोईनौकरनहींहै, साथहीउनकीमेज़बानभीलापताहैऔरदिल्लीमेंएकआलीशानइलाकेमेंरहनेवालेउनकेमेज़बाननेकनपटी केनीचेसेगोलीचलाकरखुदकोमारदियाहै।उससमयहास्यात्मकजटिलताएंपैदाहोतीहैं, जबअपनीउच्चवर्गीयस्थितिकोदेखतेहुएवेयहनिश्चयकरतेहैंकीस्थानीयपुलिसऔरमीडियाकीआँखोंसेइसशामकीघटनाकोछुपानेकेलिएजोभीसंभवहोगावेकरेंगे।यहदूसरेदिनकीप्रस्तुतिथी।
निर्देशकप्रकाशझा, जोमैथिलीरंगमंचकोएकनयाआयामदेनेऔरराष्ट्रीयनाट्यफलकपरलानेमेंपिछले 6-7 वर्षोंसेअपनीसक्रियभूमिकाकानिर्वाहकररहेहैं, हिंदीनाटकमेंउनकापहलाप्रयासथा 'बड़ानटकियाकौन' जोयुवानाट्यमहोत्सवकेतीसरेदिनकीप्रस्तुति थी।नाटक 'बड़ानटकियाकौन' आजकेउपभोक्तावादीजीवनमेंव्यक्तिकीव्यावहारिकउपस्थितिपरएकसपाटबयानथा।आजकेजीवनकीएकबड़ीविडम्बनायहहैकिमंचसेकहींअधिकदैनिकजीवनमेंहमारेव्यवहारअतिरंजित, असामान्यऔरनाटकीयहोनेलगेहैं।ऐसेमेंकिसीपेशेवरनटकिया (रंगकर्मी) कीऊर्जाएकओरपारंपरिककलाओंकेप्रतिसम्मानऔरसंरक्षणकेअभावसे, तोदूसरीओरदैनिकजीवनकेनटकियोंसेजूझनेमेंखपरहीहै। 'बड़ानटकियाकौन' ऐसेहीकुछअसली-नकलीअसामान्यचरित्रोंकीगाथाथीजिसनेगाँवसेशहरतकव्याप्तजीवनकीसहज-सरलऔरदिलचस्पपृष्ठभूमिकोखुदमेंसमेटाथा।
महानसंस्कृतकवि औरनाट्यकारकालिदासकेजीवनपरकेद्रित 'आषाढ़काएकदिन' मोहनराकेशकापहलाहिंदीनाटकहैऔरपहलाहीआधुनिकहिंदीनाटकभीमाना गयाहै।कालिदासआधुनिककलाकारकाप्रतीकहैजोअपनीकला, अपनीउपस्थिति, अपनीस्वतंत्रता, अपनीपहचानकेलिएसतत संघर्षरतहै।दूसरीओरमल्लिकाहैजोकालिदासकीसहजप्रेरणाहै।जोउसेएकमहानकवि/कलाकारबनतेदेखनाचाहतीहैऔरउसकेलिएत्यागभीकरतीहै।यहकथाहैआकांक्षओँकी, प्रेमकी, अंतर्द्वंद्वकी, त्यागकीऔरभीनाजानेकिनमूकअभिव्यक्तियोंकी।नाटकमहाकविकालिदासकेजीवनऔरकालकीएकसशक्तझांकीप्रस्तुतकरताहै।भूपेशजोशीद्वारानिर्देशितयहनाटकचौथेदिनकीप्रस्तुतिथी।
इससमारोहकेपांचवेंदिनकीप्रस्तुतिथी - महाकवि भासद्वारारचितऔरभूमिकेश्वरसिंहद्वारानिर्देशित 'प्रतिज्ञायौगन्धरायण' जो समकालीनराजनैतिक कुचक्रोंऔरराष्ट्रीयनिष्ठांएवंसाहसकेपरिप्रेक्ष्यमेंकईदृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है।इसमेंएकओरआत्मविश्वासहीनउज्जयिनीनरेशप्रद्योतहैंतोदूसरीओरपडोसीराज्यकौशाम्बीकापराक्रमी, प्रजावत्सलऔरलोकप्रियशासक है।अपनेमंत्रियोंऔरअधिकारियों केनिष्ठाहीनएवंस्वार्थलोलुपरवैयेकेकारण स्वयंमेंअक्षमऔरनितांतअसहायप्रद्योत,छल-कपट कासहारालेकरवत्सराजकोबंदीबनालेताहै।यहाँनाटक में प्रवेश होताहैप्रद्योतकीपुत्रीराजकुमारीवासवदत्ता का।इधरवत्सराजउद्यन कास्वामिभक्त, एकनिष्ठऔरकर्तव्यपरायणमहामंत्रीयौगन्धरायणअपनेस्वामीकोबंधन मुक्तकराने कीप्रतिज्ञालेताहै।उद्यनऔरयौगन्धरायणकीरीति-नीतिऔरकुशाग्रबुद्धिकेकारणप्रद्योतपग-पग पर असफल होताहै।औरवासवदत्ता ..... वहउद्यनकेसाहस, चरित्रऔरकौशलपरमुग्धहै।इसतरह नाटककोअनेकसमसामयिकप्रसंग मिलते हैं।
समारोहके छठेदिनभीष्मसाहनी द्वारारचितएवंगोविन्दसिंहयादवद्वारानिर्देशितनाटक 'कबिरा खड़ा बजारमें' कासफलमंचनहुआ।भीष्मसाहनी कीयह नाट्य कृतिमध्यकालीनवातावरणमेंसंघर्षकररहेकबीर कोउनकेपारिवारिकऔरसामाजिक सन्दर्भों सहितआजभीप्रासंगिकबनाती है।नाटककामुख्यलक्ष्यआमजनकोयह एहसासकराना हैकिईश्वरहममेंसेहरएककेभीतरहीबसताहै।नाटककेमुख्यपात्रकबीरतत्कालीन समयकेसभीप्रचलितधर्मोंसेबुद्धिकीअपीलकरतेहैं, किन्तुवेस्वयंकिसीधर्मसेसम्बंधितनहींहैं।कबीरकीसाहित्यिकतासामाजिकजड़ताकोतोड़ने माध्यमबनतीहै। कबीरकीभूमिकाकोसफलतापूर्वकनिभाया - सुधीररिखारीने।
सातवेंदिनकीप्रस्तुतिथीविजयतेंदुलकरद्वारारचितऔररोहितत्रिपाठीद्वारानिर्देशित 'ख़ामोशअदालतजारीहै'. यहनाटक प्रेसीडेंट जॉनसनपरएकमुकदमा हैजोअणुबमकेख़िलाफ़हैकिन्तुनाटककिसीऔरहीदिशामेंचलाजाताहै।मंडली मेंएककलाकारकीउपस्थितिऔरनएकलाकारकीरिहर्सलमेंहीपूरानाटकसमाप्तहोजाताहै।दरअसलवोरिहर्सलकिसीव्यक्तिगतजीवन केइर्द-गिर्दघूमतारहताहै।अंततकआते-आतेपूरेमाहौलपरएकलम्बीख़ामोशीछा जातीहै।जिसउद्देश्यसेमंडलीनाटकदिखानेआतीहैवोउद्देश्यपूरानहींहोता।इसनाटककेमाध्यमसेलेखकनेपुरुषप्रधानसमाज मेंस्त्रीकीविवशताकोदिखानेकाप्रयत्नकियाहै, जोइससमाजकेलिएएककटाक्षहै।
आठवेंदिनकीप्रस्तुतिथीमोहनराकेशद्वारारचितचंद्रशेखरशर्माद्वारानिर्देशित 'आधे-अधूरे'. यहइससमारोहकी अंतिम प्रस्तुतिथी।यहनाटकएकमध्यवर्गीयपरिवारकेबिखरावऔरइसकेसामाजिक, पारिवारिकमूल्योंकीगवेषणाकरताहै।बदलतेहुए शहरीजीवनकेपरिप्रेक्ष्यमेंयहस्त्री-पुरुषसंबंधोंकाखुलासाकरताहै।नाटककाकथानकएकअधेड़औरतसावित्रीकेइर्द-गिर्द घूमताहैजोअपनेवैवाहिकजीवनसेसंतुष्टनहींहैपरपरिस्थितियोंसेसमझौतेकोभीतैयारनहीं।वोअपनेबिखरेपरिवारकेटुकड़ोंकोसमेटनेकाभरसकप्रयासकरतीहैपरव्यर्थ ...औरइसीकुंठा मेंवहकिसीऐसेपुरुषकोतलाशनेमेंजुटतीहैजोपूर्णहोऔरउसकीसामाजिकऔरआर्थिकसुरक्षासुनिश्चितकरसकेक्योंकिउसकाखुदकापतिउसकीज़रूरतें करपाने मेंअसमर्थहै।उनकेअशांतऔरक्षोभोन्मुखसंबंधोंकीपरछाईउनकेबच्चोंकेजीवनपरभीपड़तीहै।