तुषार धवलहिंदी के उन युवा कवियों में से है जिसने कभी भेड़चाल का हिस्सा बनना स्वीकार नहीं किया. वह चुपचाप अपने तरीके से शिल्प और कथ्य दोनों की तोड़-फोड़ करता रहता है और हिंदी के सत्ता विमर्श के कानफोडू शोर की ओर पीठ किये लगातार सृजनरत रहता है. विचारधारा को लेकर उसकी अपनी नज़र है, जिससे मेरी असहमति स्पष्ट है. लेकिन मनुष्यता के पक्ष में उसका कलम इस मजबूती से खड़ा होता है कि कई बार उसका यह विचारधारा विरोध मुझे विचार से कम उसके झंडाबरदारों से अधिक लगता है. ब्रांडिंग के इस ज़माने में वह लगातार नए प्रयोग करता है, नए क्षेत्रों में प्रवेश करने की कोशिश करता है और खतरे उठाकर अपने हिस्से का सच कहने की कोशिश करता है. जिन लोगों ने उसकी काला राक्षसऔर अभी हाल में कविता 'ठाकुर हरिनारायण सिंह'पढ़ी है, वे इसकी ताकीद करेंगे कि वह हमारे समय में लम्बी कविताओं को सबसे बेहतर और मानीखेज तरीके से साधने वाले कवियों में से है.
'तनिमा' जैसे उसकी निजी कविता है...निजी से सार्वजनीन की लम्बी और महतवपूर्ण यात्रा करने वाली. मारी गयी और जीते-जी मरती हुई बेटियों के नाम लिखी हुई. जिस आत्मीयता और जिस आवेग के साथ तुषार ने इसे रचा है वह स्त्री विमर्श के इस पूरे परिवेश को थोड़ा और विस्तारित करता है, थोड़ा और मानवीय बनाता है. इसे पढ़ते हुए मुझे अपने एक और मित्र कवि अंशु मालवीय की कविता 'कैसर बानो की अजन्मी बिटिया की ओर से' की याद आती है. गुजरात दंगों के दौरान उस माहौल के दबाव में लिखी उस कविता से अलग यह कविता 'सामान्य काल' में देश और दुनिया भर में मलाला से लेकर हमारे मोहल्ले या फिर हमारे घर की ही किसी लड़की के साथ ज़ारी अन्याय, भेदभाव और खाप पंचायतों के बीच एक अजन्मी बच्ची से कवि का आद्र संवाद है. मैं कवि की आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए पुकार रहा हूँ तनिमा को...
तनिमा
(मारी गई और जीते-जी मरती हुई बेटियों के नाम )
तुम्हारी नन्हीं हथेलियों में
मैं कब अपना सारा संसार रख देता हूँ
मुझे पता भी नहीं चलता
तुम्हें गोद में उठाते हुए मेरा सर्वस्व तुम्हारी गोद में होता है बिटिया !
सब कुछ अपना तुम में धर कर तुम्हीं में उड़ता हूँ मुक्त फिर जन्म लेता हूँ तुम्हारी हर पुकार पर
तुम यहाँ नहीं हो
अभी इस संसार में देह लिये लेकिन
मौजूद हो तुम अपनी माँ और मेरे योग के संयोग के उस क्षण में
जिसका अवतरण नहीं हुआ है
लेकिन तुम्हारी कमी जैसा कुछ नहीं लगता मुझे
तुम्हारी किलकारी ! ओह्होय !! देखो देखो किस तरह पैरों के अँगूठों पर चल रही है !
ताय-ताय,ताय-ताय ! एक पाजेब चाँदी की नन्हीं सी कदमतालियों में रख दो
झुन झुन झन झुन
अरे अर्रर्रे ! देखो गिरेगी ! देखो देखो उसको
ओह्हो ! शू शू ! इसकी डायपर बदल दो,कुछ खिला दो दूध पिला दो सो जायेगी
ऊँहूँह ! श्शश ! धीरे से ! जग जायेगी तो रोयेगी. उसे मत रुलाओ कोई ! आओ ओ बिटिया मेरी पाखी मेरे कंधों पर सर रख दो देखो सपने सुंदर सुनहरे. तुम्हारी नन्हीं हथेलियों पर लकीरें हैं तुम्हारे समय की जाने क्या क्या आयेगा तुम्हारे हाथ क्या छूट जायेगा ... बलाएँ छूटें तुम्हारी सुख आये हाथ ! सो जा... ऊँssमुच्च्च ! आ री सोनचिरैया...
सूरज चंदा और सितारे
तेरे आँगन खेलें सारे
तेरे संसारों में हरदम
जीयें सुख सम सखा तुम्हारे
देखो सो रही है ! चुप श्शश...
उसकी गुलाबी फ्रॉक पर दूध के दाग ! दो दाँतों ने झाँकना शुरू किया है जस्ट अभी
गुलाब के बदन पर दो तारों की झिलमिल अँगड़ाई
पकी माटी के दीये में चम्पा की दो पंखुड़ी !
बचा रह जाये यह सब वाष्प बनकर उड़ रहे समय के बाद भी रह सको सुरक्षित तुम हमेशा पर
जानता हूँ बिटिया ! तुम सुरक्षित नहीं हो कहीं भी --- गर्भ से चिता तक
लेकिन फिर भी आओ इस क्रूर समय संसार में
इसी क्रूर समय संसार में फिर फिर आओ उन्हीं हाथों में जो तुम्हें घोंट देते हैं ! आती रहो आती रहो हर बार जब तक कि हिंसा प्रेम ना सीख जाये उन खूनी सख्त हाथों में एक कोमल कम्पन भर दो बिटिया ! आओ कि बहुत बीमार है धरती और तुम्हारी राह तकती है हर हत्या में हर गर्भपात हर अपहरण में
वही चीख
फाड़ती है उसका आकाश और उसका कलेजा
उसके सूखे बाल भूरे बादलों के जंग खाये पंखों से कबाड़ की ढेर की तरह बिखरे हैं
उजड़े हुए हैं खुशी के रास्ते मातम है पृथ्वी पर जिसे कोई नहीं समझता लेकिन मैं कहता हूँ आओ बिटिया !
मेरी गोद में भी आओ मेरी तनिमा !
यही है तुम्हारा नाम
मेरी बेटी !
अणिमा की दुलारी फुलकारी हमारी कल्पना की
तनिमा,कृशांगी सुंदर,कवियित्री !
तनिमा,युग्म हमारे नामों का
तनिमा,यानि तुम
तनिमा,यानि हम
तनिमा है और यह सब जानते हैं
सिर्फ मैं ही नहीं जानता कहाँ हो तुम इस वक़्त
हमारी साँस हमारी धड़कन कब वह क्षण उगायेगी जिसमें तुम हो अभी अवस्थित
आओ और हर घर में हो जाओ हर घर की अपनी तनिमा हर घर की बेटी होना मौत को मुँह चिढ़ाने सा होता है खतरनाक जिम्मेदारियों के झोंटों में उलझी पतंग सा खतरनाक होता है बेटी बन कर आना
खतरनाक होता है जन्म यहाँ फिर भी आओ तनिमा आओ हर बार ऐसी ही बार बार आओ
आओ फतवों की लपलपाती जीभ पर चल कर
फिलिस्तीन साइप्रस के खून में जन्मो तालिबानी बंदूकों में अपनी टिहुँक भर दो बारूदों में विस्फोटों में हर जगह उतरो चलो इन्हीं नरमुण्डों पर इन उलटते पहाड़ों पर फटते बादलों पर उतरो प्रलय के हाहाकार में मृत्यु की घोर पातकी करतूतों में उतरो बाज़ारों के लोभी छल में उस मोहजाल में उतरो मेरी बेटी वहाँ प्यार भर दो शांति भर दो यहाँ वहाँ हर जगह यहीं वहीं होना है तुम्हें इस वक़्त और यह तुम्हीं कर सकती हो क्योंकि तुम स्त्री हो और मेरे कलेजे से निकली हुई एक कोमल कल्पना हो एक विकल्प हो इन लाचार जिजीविषाओं का
आओ फिर फिर आओ मृत होने को कूड़े के ढेरों में फेंके जाने को चिताओं या रसोइयों में झोंके जाने को ठगी जाने को लेकिन आओ और यहीं आओ कि अभी यही है हमारे पास हम कितना भी चाहें,खुश हो लें,लेकिन हाथ खोलेंगे तो यही निकलेगा और इसे ही स्वीकारो इसे ही बदलो और इसीलिये आओ! आओ ऋचाओं के पुनर्पाठ में मार्क्स और मनु के अंतर्सम्वाद में स्त्रीवादी विमर्शों के ढकोसले प्रलापों में आओ एक सम्पूर्ण खुरदुरी स्त्री तनिमा !
तुम्हारे जन्म में जन्म लेगी एक माँ जन्मेगा एक पिता जन्म लेगा एक संसार
कितना कुछ जनोगी बिटिया तुम जन्मते ही !
तुम जीवन का उत्सव हो सृजन का संसृति का इसीलिये आओ
डाली पर बैठे कालिदासों के घर आओ
आओ और हिंसक नरों के इस बौराये झुण्ड को प्यार से सहला दो
स्पर्श करके जगा दो उन्हें अपनी माटी में पूरा का पूरा
आओ कि इसी वक़्त विश्व को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है एक माँ की
तुम बेटी हो और तभी तुम पर यह भरोसा करता हूँ बिटिया ! आओ !
तुम अभी नहीं हो और
हर बेटी में
तुम्हारा इंतज़ार है.